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हजारीप्रसाद द्विवेदी के उद्धरण

प्रेमचंद शताब्दियों से पददलित और अपमानित कृषकों की आवाज़ थे। पर्दे में क़ैद, पद-पद पर लांछित और अपमानित असहाय नारी जाति की महिमा के ज़बर-दस्त वकील थे।