परमेश्वर का स्वरूप मन और वाणी से परे है। इसके संबंध में हम इतना ही कह सकते हैं कि यह परमेश्वर अनंत, अनादि, सदा एकरूप रहनेवाला, विश्व का आत्मारूप अथवा आधाररूप और विश्व का कारण है। वह चैतन्य अथवा ज्ञानस्वरूप है। इसी का एक सनातन अस्तित्व है। शेष सब नाशवान है। अतः उसे एक छोटे से शब्द से समझने के लिए हम इसे 'सत्य' कह सकते हैं ।