श्यामसुंदर दास के उद्धरण
पराधीन जातियों में मानसिक दासत्व क्रमशः बढ़कर इतना व्यापक हो जाता है कि शासित लोग, शासकों की नक़ल करने में ही अपने जीवन की कृतकृत्यता समझते हैं।
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