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विष्णु खरे के उद्धरण

‘सामाजिक’ विषयों पर लिखी गई कविता, यदि वह फूँक-फूँक कर नहीं लिखी गई है तो तुरंत एक ढर्रे का शिकार होती है और उसका अधिकांश हिस्सा अख़बारनवीसी बन कर रह जाता है।