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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

निर्गुण-मतवादियों का ईश्वर एक था, किंतु अब तुलसीदासजी के मनोजगत में परब्रह्म के निर्गुण-स्वरूप के बावजूद, सगुण ईश्वर ने सारा समाज और उसकी व्यवस्था—जो जातिवाद, वर्णाश्रम धर्म पर आधारित थी—उत्पन्न की।