कृष्ण कुमार के उद्धरण

नए डाकख़ाने की तासीर है कि कोई सुख ज़्यादा देर न चले; सुख और सनसनी में गठजोड़ मज़बूत रहे। पुराना डाकख़ाना सुख को दुःख की तरह घूँट-घूँट पीकर जीने की शैली का प्रचार-प्रसार करता था।
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