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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

नई प्रकृतियों और प्रवृत्तियों की रचना-प्रक्रिया में, सूक्ष्म-दृष्टि रखने के लिए आलोचक को संवेदनात्मक जीवन-ज्ञान आवश्यक है—ऐसे जीवन का ज्ञान, जो नवीन प्रवृत्ति-रूप में सामने आया हो।