लास्ज़लो क्रास्ज़्नाहोरकाई के उद्धरण
मेरा ऐसा मानना है कि मैंने अपनी भाषा में अपनी किताब लिख दी, मेरा काम वहीं तक है। उसके बाद जब कोई उस किताब को दूसरी भाषा में अनुवाद करता है, तब वह मेरी किताब के आधार पर एक नई किताब की रचना करता है। वह किताब मेरी नहीं, उसकी होती है। उसकी भाषा, शब्द, सब कुछ उसके होते हैं।
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