Font by Mehr Nastaliq Web

रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

मनुष्य पूर्ण नहीं है, पूर्ण होना है। इस 'है' के छोटे-से पिंजरे में ही यदि हम उसे क़ैद कर देंगे, तो यह उसके लिए नरक हो जाएगा।

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार