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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

मनुष्य दो तरह से अपने महत्त्व की उपलब्धि करता है—स्वातंत्र्य के बीच और मिलन के बीच। भारत ने स्वभावतः इनमें से दूसरा मार्ग अपनाया है।

अनुवाद : विश्वनाथ नरवणे