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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

मनुष्य के कार्यों के दो क्षेत्र होते हैं—एक प्रयोजन का क्षेत्र, दूसरा लीला का क्षेत्र। प्रयोजन का दबाव पूरा-पूरा बाहर से आता है, अभाव से आता है—लीला की प्रेरणा भीतर से आती है, भाव से आती है।

अनुवाद : अमृत राय