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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

मनुष्य का यह महाभाग्य था कि भगवान बुद्ध में मनुष्य का सत्य स्वरूप देदीप्यमान हुआ। उन्होंने मानव-मात्र को अपने विराट हृदय में ग्रहण किया और मानवता को प्रकाशित किया।

अनुवाद : विश्वनाथ नरवणे