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वेदव्यास के उद्धरण

मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है किंतु स्वयं उसी निद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है।