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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

लोग आलोचना करते समय किसी ख़ास 'वाद' के दायरे में बाँधकर ही साहित्य को देख पाते हैं—यह तरीक़ा एकदम ग़लत है।