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श्रीलाल शुक्ल के उद्धरण

लेक्चर का मज़ा तो तब है जब सुननेवाले भी समझें कि यह बकवास कर रहा है और बोलनेवाला भी समझे कि मैं बकवास कर रहा हूँ। पर कुछ लेक्चर देनेवाले इतनी गंभीरता से चलते कि सुननेवाले को कभी-कभी लगता था यह आदमी अपने कथन के प्रति सचमुच ही ईमानदार है।