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आदि शंकराचार्य के उद्धरण

क्योंकि मैं पूर्णानंदस्वरूप परमात्मा से भिन्न नहीं हूँ और सदा ही तृप्त हूँ, अतः मुझे किसी चीज़ की इच्छा नहीं है। मैं सर्वदा ही तृप्त हूँ और अपने लिए किसी हित की कामना नहीं करता। हे चित्त! तू शांत होने के लिए प्रयत्न कर, यही तेरे लिए हितकर है।