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कृष्ण कुमार के उद्धरण

कोई जाड़े में ठिठुर रहा है या गर्मी में प्यासा है, उसकी फ़िक्र करने के लिए टैगोर का ‘मानव-धर्म’ पढ़ने की ज़रूरत नहीं है।