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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

किसी दूसरे देश की श्रीवृद्धि से जब हम मुग्ध हो जाते हैं, तब बहुधा हम उस देश की साधना के परिणत रूप पर ही दृष्टिपात करते हैं। जिस दुर्गम पथ पर चलकर वह साधना सफल हुई है, उसे हम नहीं देखते।

अनुवाद : विश्वनाथ नरवणे