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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

काव्य-भाषा का एक वज़न होता है, समय होता है, उसी को छंद कहते हैं। गद्य को ऐसी कोई चिंता नहीं होती, वह छाती फुलाकर चलता है।

अनुवाद : अमृत राय