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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

किसी भी प्रवृत्ति-विशेष के स्वरूप का अध्ययन तब हो सकता है, जब उस साहित्य-प्रवृत्ति की आंतरिक विशेषताओं के अध्ययन के साथ-ही-साथ, उस प्रवृत्ति के भीतर झलकती हुई व्यक्ति-स्थिति, समाज-स्थिति और उन सबके परस्पर अंतःसंबंध हम आत्मगत करें। और उन सबके स्वरूप का वस्तुगत विश्लेषण करते हुए, हम प्रवृत्ति-विशेष का प्रतिनिधित्व करने वाली मुख्य-मुख्य और कुछ-कुछ गौण कलाकृतियों का सर्वांगीण अध्ययन करें—व्यापक जीवन-दृष्टि से।