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रामधारी सिंह दिनकर के उद्धरण

कीर्ति की कामना अध्यात्म-साधना में दूषित मानी जाती है, किन्तु साहित्यशास्त्र में वह साहित्य का एक प्रयोजन समझी जाती थी।