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रामधारी सिंह दिनकर के उद्धरण

कविता विचारों के परवान पर चढ़कर अपने आकार को बढ़ाना नहीं चाहती। वह भावना की सच्चाई के बाद एक शब्द भी नहीं बोलती है।