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कुबेरनाथ राय के उद्धरण

काम ऊर्ध्वतर होता हुआ निर्मल ज्योतिष्मान् होता जाता है। वैसे ही दु:ख उलटी दिशा में गंभीर से गंभीरतर होता हुआ, प्रगाढ़ और पारदर्शक होता जाता है। ऐसा पारर्दशक कि वह सार्वभौमता का दर्पण बन जाए—निर्मल, प्रसन्न और गंभीर दु:ख।