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श्रीलाल शुक्ल के उद्धरण

जो दिन भर एक ऐसी भाषा और शब्दावली का प्रयोग करता है जिसके शब्द बरसों के इस्तेमाल से अपनी सारी नई संभावनाएँ खो चुके हैं, जिसका सारा चिंतन और आचरण निर्दिष्ट पद्धति और पूर्वदृष्टांत का पिछलगुआ हो, जिसकी धारणाएँ और विवेक पूर्वानुभव से या किसी ऊपरी सत्ता से अनुशाषित हों, वह धीरे-धीरे अपने व्यक्तित्व में उन तत्त्वों को आत्मसात् करेगा ही जो बुनियादी तौर पर अच्छे सर्जनात्मक लेखन के ख़िलाफ़ हैं।