जिसे कुछ आशा है, वह एक तरह से सोचता है और कोई आशा नहीं होती, वह कुछ और ही प्रकार से सोचता है। पूर्वोक्त चिंता में सजीवता है, सुख है, तृप्ति है, दुःख है और उत्कंठा है। इसलिए वह मनुष्य को श्रांत कर देती है—वह अधिक समय तक नहीं सोच सकता। लेकिन आशाहीन को न तो सुख है, न दुःख है, न उत्कंठा है, फिर भी तृप्ति है।