जिसे हम प्यार करते हैं, वह अगर हमें प्यार न करे, यहाँ तक कि घृणा भी अगर करे, तो हम उसे शायद सह सकते हैं, किंतु जिसके बारे में विश्वास करते हैं कि उसका प्यार हम प्राप्त कर चुके हैं, उसी के विषय में यदि अपनी भूल हमें मालूम हो जाए तो वह बड़े कष्ट की स्थिति होती है। पहली अवस्था में तो व्यथा ही होती है परंतु दूसरी अवस्था में अपना अपमान भी जान पड़ता है।