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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

जिस तरह सामाजिक व्यथा से जाग्रत मानवी-आत्मा यथार्थवादी हो जाती है, उसी तरह अपनी संपन्न परिस्थिति में; अपनी भावनाओं के मनोहर कोष से चेतन मानव-आत्मा, भावना-प्रधान और कल्पना-प्रधान—जिसे रोमैंटिक कहते हैं, हो जाती है।