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श्यामसुंदर दास के उद्धरण

जिस पदार्थ के दर्शन में मन प्रसन्न नहीं होता, वह सुंदर नहीं कहा जा सकता। यही कारण है कि भिन्न-भिन्न देशों के लोग; अपनी-अपनी सभ्यता की कसौटी के अनुसार ही सुंदरता का आदर्श स्थिर करते हैं, क्योंकि सबका मन एक-सा संस्कृत नहीं होता।