Font by Mehr Nastaliq Web

रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

जिनका मन डूब गया है; उनमें विशुद्ध स्वाभाविकता की शक्ति नहीं रह जाती, वह मन अपवित्र-अस्वस्थ हो उठता है।

अनुवाद : चंद्रकिरण राठी