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कल्हण के उद्धरण

जैसे वंशी के संपूर्ण छिद्रों में यदि वायु भरी जाए, तो वह कोई शब्द भी नहीं प्रकट कर सकती, उसी प्रकार अनेक मार्गों से संकल्पित विचार अवश्य ही निश्चय को नहीं प्राप्त होता।