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वेदव्यास के उद्धरण

जैसे गर्मी में छोटी-छोटी नदियाँ सूख जाती हैं, उसी प्रकार धनहीन हुए मंदबुद्धि मनुष्य की सारी क्रियाएँ छिन्न-भिन्न हो जाती हैं।