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दयाराम के उद्धरण

जहाँ प्रीति होती है, वहाँ नीति नहीं ठहरती। और जहाँ नीति होती है, वहाँ प्रीति नहीं रहती। ये दोनों वस्तुएँ उसी प्रकार एकत्र नहीं हो सकतीं, जिस प्रकार मदिरा की मस्ती और चतुराई।