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गुरु नानक के उद्धरण

जब मैं अपने शरीर को विकारों से बचाने के बारे में विचार करता हूँ, तो मैं जीवों पर दया करने वाला दिगंबर हूँ। जब मैं अपने अभिमान को ख़त्म करता हूँ, तो मैं अहिंसक हूँ अर्थात् दूसरे जीवों को न मारने वाला हूँ।