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आदि शंकराचार्य के उद्धरण

हे भवानी! मेरा बोलना-चालना आपका जप हो, मेरा शिल्प (मेरी चेष्टाएँ) आपकी उपासना से संबद्ध मुद्राओं की रचना हो, चलना आपकी प्रदक्षिणा लगाना हो, भोजन करना आपको विधिवत दी गई आहुतियाँ हों, भूमि में लेटना आपके लिए प्रणाम हो, इस प्रकार जितना भी मेरा विलास और चेष्टाएँ हैं, वे सब आत्मापर्ण की विधि से की गई आप की पूजा के पर्यायवाची हो जाए।