हे अर्जुन! सर्दी-गर्मी और सुख:दुख को देने वाले इंद्रियों और विषयों के संयोग तो क्षणभंगुर और अनित्य हैं, इसीलिए उनको तू सहन कर, क्योंकि हे पुरुषश्रेष्ठ! दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इंद्रियों के विषय व्याकुल नहीं कर सकते, वह मोक्ष के लिए योग्य होता है।