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जे. कृष्णमूर्ति के उद्धरण

हमारा मन अनवरत प्रलाप करता रहता है, क्योंकि इसे किसी-न-किसी चीज़ के साथ सदा व्यस्त रहना है।

अनुवाद : हरीश