महमूद दरवेश के उद्धरण
फ़िलिस्तीनी होना कितना कठिन है और किसी फ़लिस्तीनी के लिए लेखक या कवि होना तो और भी मुश्किल है...। इस तरह की गुलामी की स्थितियों में वह किस तरह से रचनात्मक स्वतंत्रता हासिल कर सकता है? और इस तरह के नृशंस दौर में वह किस तरह साहित्य की साहित्यिकता को बरकरार रख सकता है।
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