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अज्ञेय के उद्धरण

दुःख उसीकी आत्मा को शुद्ध करता है जो उसे दूर करने की कोशिश करता है। शुद्धि दूसरे के साथ दुःखी होने में नहीं; दूसरे के स्थान पर दुःखी होने में है।