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श्री अरविंद के उद्धरण

दरिद्रता का होना एक अन्यायपूर्ण तथा कुव्यवस्थित समाज का प्रमाण है और हमारी सार्वजनिक दानशीलता केवल एक डाकू के विवेक का प्रथम और धीमा जागरण है।