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वासुदेवशरण अग्रवाल के उद्धरण

दैवी वृत्तिवाला मनुष्य; दिलीप के समान कामधेनु की गौ-सेवा करके उसका दुग्ध पीना चाहता है। वही यज्ञिय भोग है। असंयत व्यक्ति इंद्रियों को निचोड़कर उनका रक्त पी लेना चाहता है।