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श्री अरविंद के उद्धरण

ब्रह्मचर्य से हम जितना अधिक तप, तेज, विद्युत और ओज का भंडार बढ़ा सकेंगे, उतना ही हम स्वयं को शरीर, हृदय, मन और आत्मा के कार्यों के लिए चरम शक्ति से भर लेंगे।