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मैनेजर पांडेय के उद्धरण

भ्रमरगीत सूरसागर का एक अंश है, लेकिन यह एक स्वतंत्र काव्यरूप भी है। इसकी परंपरा सूरदास से पुरानी है, और सूरदास के भ्रमरगीत के बाद इसकी लंबी परंपरा है।