जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

भय से फैले हुए विवेक ने हमारी स्वाभाविकता का दमन कर लिया है। ऐसा मालूम पड़ता है कि हम प्रतिपद सशंक निष्ठुरता से शासित प्राणी हैं।
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