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मैनेजर पांडेय के उद्धरण

भक्तिकाल के लोकधर्म को लेकर आलोचना में जो धर्मयुद्ध चला है; उसमें शास्त्रीय धर्म से लोकधर्म के द्वंद्व की पहचान हुई है, लेकिन लोकधर्म के आंतरिक द्वंद्व की उपेक्षा हुई है।