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हजारीप्रसाद द्विवेदी के उद्धरण

बंधन ही सौंदर्य है, आत्म-दमन ही सुरुचि है, बाधाएँ ही माधुर्य हैं नहीं तो यह जीवन व्यर्थ का बोझ हो जाता।