विनोद कुमार शुक्ल के उद्धरण

बहुत दुःख के बाद भी बहुत दु:खों से बचने का यह रिवाज़ था। दुःख से लबालब भरे हुए को बाँधना कि फूट न जाए। बहकर पड़ोसी के घर न जाए।
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