जयशंकर प्रसाद के उद्धरण
अतीत सुखों के लिए सोच क्यों, अनागत भविष्य के लिए भय क्यों, और वर्तमान को मैं अनुकूल बना ही लूँगा, फिर चिंता किस बात की?
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