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राधावल्लभ त्रिपाठी के उद्धरण

अपने युग के संशयों तथा जीवन की दुःखमयता के विचारों के पूर्वपक्ष के रूप में उठाते हुए, वाल्मीकि हनुमान के अंतर्द्वंद्व तथा ऊहापोह के माध्यम से अंततः यही दिखाते हैं कि जीवन एक वरदान है, अभिशाप नहीं।