Font by Mehr Nastaliq Web

जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

आज मुझे अपने अंतर्निहित ब्राह्मणत्व की उपलब्धि हो रही है। चैतन्य सागर निस्तरंग है और ज्ञान ज्योति निर्मल है।