Font by Mehr Nastaliq Web

केदारनाथ सिंह के उद्धरण

आज की कविता शुद्ध रूप से पाठ्य कविता बन गई है जबकि उसकी प्रकृति में ही निहित है कि वह जितनी पाठ्य उतनी ही श्रव्य होगी। कविता को लगातार ज़िंदा रहने के लिए समाज की आँख एवं कान दोनों का विषय बनना चाहिए।